By – Waseem Raza Khan
नासिक और मालेगांव महानगरपालिका चुनावों की घोषणा के साथ ही उत्तर महाराष्ट्र के इन दो प्रमुख शहरों में राजनीतिक पारा चढ़ गया है 15 जनवरी को होने वाले मतदान के लिए नासिक की 122 और मालेगांव की 84 सीटों पर उम्मीदवारों की कतार लंबी होती जा रही है. 4 साल के लंबे इंतजार के बाद पूर्व पार्षदों के लिए यह अपनी सत्ता वापसी का मौका है, तो वहीं बड़ी संख्या में समाज सेवा का चोला ओढ़े नए चेहरे भी मैदान में हैं. इन चुनावों में एक दिलचस्प ट्रेंड देखने को मिल रहा है. हर दूसरा उम्मीदवार खुद को समाज सेवक बता रहा है. निःसंदेह समाज सेवा राजनीति की पहली सीढ़ी है, लेकिन क्या हर समाज सेवा करने वाला व्यक्ति नगर निगम चलाने की योग्यता रखता है? कई ऐसे उम्मीदवार भी हैं जिन्हें केवल ‘पार्षद’ कहलाने का शौक है. उनके लिए समाज सेवा एक ऐसा निवेश है जिसके बदले वे सत्ता और पद का मुनाफा चाहते हैं. मतदाताओं को ऐसे लोगों से सावधान रहना होगा जो केवल चुनाव के कुछ महीने पहले सक्रिय हुए हैं.
हैरानी की बात यह है कि कुछ उम्मीदवार उन मुद्दों पर बात कर रहे हैं जिनका महानगर पालिका से कोई लेना-देना ही नहीं है. नगर निगम का चुनाव मुख्य रूप से पानी की आपूर्ति, सड़कों का रखरखाव, कचरा प्रबंधन, स्ट्रीट लाइट, प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए होता है. जो उम्मीदवार अंतरराष्ट्रीय, जज़बाती मुद्दों या राज्य स्तर की राजनीति पर लंबी-चौड़ी बातें कर रहे हैं, वे दरअसल जनता का ध्यान बुनियादी समस्याओं से भटका रहे हैं.
एक समझदार मतदाता के रूप में, वोट डालने से पहले इन बिंदुओं पर विचार करना अनिवार्य है. क्या उम्मीदवार को पता है कि निगम का बजट कैसे काम करता है? क्या वह अधिकारियों से अपने वार्ड के काम करवाने की क्षमता रखता है? उम्मीदवार के पास वार्ड के विकास का क्या ब्लूप्रिंट है? क्या उसके पास कचरा निस्तारण या जल संरक्षण के लिए कोई व्यावहारिक समाधान है? क्या उम्मीदवार पिछले 4 वर्षों में (जब चुनाव नहीं हुए थे) जनता के बीच था? या वह केवल ‘टिकट’ की घोषणा होने के बाद बाहर निकला है? नए उम्मीदवारों की बहकी-बहकी बातों और लुभावने वादों के बजाय उनकी बातों में छिपे तर्क को पहचानें. लोकतंत्र में आपका वोट केवल एक बटन दबाना नहीं है, बल्कि अगले 5 सालों के लिए अपने शहर का भाग्य लिखना है. नासिक और मालेगांव जैसे तेजी से बढ़ते शहरों को ऐसे जनप्रतिनिधियों की जरूरत है जो ‘समाज सेवक’ होने का ढोंग न करें, बल्कि शहर की व्यवस्था को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी समझें. पार्षद बनना कोई शौक नहीं, बल्कि जनसेवा का एक गंभीर अनुबंध है. इस 15 जनवरी को, किसी के ‘शौक’ को पूरा करने के बजाय, शहर की ‘जरूरत’ को पूरा करने वाले उम्मीदवार को चुनें.




