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‘चिट्ठी आई है’: एक पाठ बनाम नफरत की राजनीति – ‘लव जिहाद’ और ‘भगवा ट्रैप’ का भ्रमजाल

By – Waseem Raza Khan

NCERT की कक्षा 3 की किताब ‘हमारे आस-पास’ का पाठ ‘चिट्ठी आई है’ बच्चों को संचार के एक मूलभूत माध्यम पत्र लेखन से परिचित कराता है. यह पाठ रीना नामक एक लड़की द्वारा अपने दोस्त अहमद को अगरतला आने का निमंत्रण देने के बारे में है. इसका सीधा और सरल उद्देश्य बच्चों को पत्र लिखने का तरीका, डाक सेवा की प्रक्रिया और विभिन्न स्थानों की जानकारी देना है. यह पाठ रचनात्मकता और लेखन कौशल को बढ़ावा देता है.

​लेकिन सितंबर 2024 में, इस पाठ के निर्दोष पात्रों रीना (हिंदू नाम) और अहमद (मुस्लिम नाम) को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया गया, जिस पर ‘लव जिहाद’ के मनगढ़ंत आरोप लगाए गए. यह घटना भारतीय मीडिया और राजनीतिक विमर्श में फैलाए जा रहे भ्रमजाल और नफरत की राजनीति का एक ज्वलंत उदाहरण है, जहाँ एक सामान्य स्कूली पाठ को भी सांप्रदायिक रंगत दी जा रही है. ​’लव जिहाद’ और ‘भगवा लव ट्रैप’ जैसे शब्द राजनीतिक और मीडिया विमर्श में बार-बार उछाले जाते हैं. इनका इस्तेमाल एक विशेष समुदाय के खिलाफ भय और भ्रम पैदा करने के लिए किया जाता है. ये धारणाएं इस बात पर आधारित हैं कि एक समुदाय के पुरुष (या महिलाएँ) दूसरे समुदाय की महिलाओं (या पुरुषों) को प्रेम के बहाने फँसाकर उनका धर्म परिवर्तन कराते हैं. ​तथ्य यह है कि ‘लव जिहाद’ या ‘भगवा लव ट्रैप’ जैसी कोई संगठित, बड़े पैमाने पर चलने वाली वास्तविकता भारत में मौजूद नहीं है. यह केवल एक राजनीतिक और सांप्रदायिक फंडा है, जो निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करता है. समुदायों के बीच अविश्वास और दरार पैदा करना ताकि वोट बैंक की राजनीति को मजबूत किया जा सके, एक विशेष समुदाय के मन में डर पैदा करना और उन्हें निरंतर संदेह की दृष्टि से देखना, नेताओं द्वारा भावनात्मक और विभाजनकारी मुद्दों का उपयोग करके अपनी राजनीति को बढ़ावा देना, दो वयस्कों के बीच सहमति से बने प्रेम संबंध और विवाह को ‘षड्यंत्र’ का नाम देकर उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करना, केवल यही उद्देश्य हैं जिनसे सामाजिक ध्रूविकरण किया जा रहा है. ​भारत में सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न जांच एजेंसियों ने भी ‘लव जिहाद’ के संगठित होने के कोई पुख्ता सबूत नहीं पाए हैं. यह अधिकतर इंटरफेथ (Interfaith) और इंटरकास्ट (Intercaste) विवाहों को नफरत का नाम देने का एक प्रयास है.

​🇮🇳 भारत की सामाजिक-धार्मिक बुनावट और अंतर्धार्मिक विवाहों का इतिहास

​भारतीय समाज हमेशा से विविधता और मेल-मिलाप का रहा है. हमारे देश में सदियों से विभिन्न जातियों और धर्मों के बीच विवाह होते रहे हैं. विवाह, प्रेम और सामाजिक मेलजोल को हमेशा से ही व्यक्तिगत पसंद का मामला माना गया है. ​धर्म परिवर्तन केवल अंतर-धार्मिक विवाहों तक ही सीमित नहीं है और न ही इसका संबंध ‘लव जिहाद’ जैसे किसी षड्यंत्र से है. ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जहां व्यक्तियों ने अपने ही धर्म और समाज की लड़की से शादी करने के लिए या सामाजिक बंधनों से मुक्त होने के लिए धर्म परिवर्तन किया है.

कई मामलों में, पहले से शादीशुदा हिंदू पुरुष ने अपनी ही जाति या धर्म की लड़की से दूसरी शादी करने के लिए इस्लाम धर्म अपना लिया, क्योंकि पर्सनल लॉ (जैसे कि पहले हिंदू पर्सनल लॉ में) एक से अधिक विवाह की अनुमति नहीं देते थे. ​ दलित समुदाय के लोगों ने सदियों से हिंदू धर्म की जातिगत कठोरता से मुक्ति पाने के लिए बौद्ध धर्म, सिख धर्म या इस्लाम धर्म अपनाया है. यह सामाजिक उत्थान का मामला था, न कि किसी ‘लव जिहाद’ का. साहित्य, फिल्म और वास्तविक जीवन में ऐसे हजारों उदाहरण हैं जहां हिंदू लड़के ने मुस्लिम लड़की से या मुस्लिम लड़की ने हिंदू लड़के से शादी करने के लिए बिना किसी ‘ट्रैप’ के, स्वेच्छा से, धर्म परिवर्तन किया है या नहीं भी किया है (विशेष विवाह अधिनियम, Special Marriage Act, 1954 के तहत). इन सभी ऐतिहासिक और समकालीन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि धर्म परिवर्तन या अंतर-धार्मिक विवाह का आधार हमेशा से व्यक्तिगत प्रेम, सामाजिक मजबूरी, या धार्मिक/सामाजिक स्वतंत्रता की खोज रहा है, न कि कोई संगठित ‘जिहाद’ या ‘ट्रैप’.

​📚’चिट्ठी आई है’ के ​रीना और अहमद की कहानी पर विवाद खड़ा करना नफरत की राजनीति की पराकाष्ठा है. एक तीसरी कक्षा के पाठ का उद्देश्य केवल बच्चों को संचार सिखाना है. ​रीना और अहमद सिर्फ दो दोस्त हैं जो छुट्टियों में मिलने की योजना बना रहे हैं. यह भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का सरल चित्रण है. ​इस पाठ को ‘लव जिहाद’ से जोड़ना कुटिलता और मानसिक दिवालियापन को दर्शाता है. यह दर्शाता है कि कैसे राजनीतिक और मीडिया प्रतिष्ठान देश की युवा पीढ़ी के मन में भी विभाजन का बीज बोने की कोशिश कर रहे हैं. ​यह निस्संदेह सच है कि NCERT को इस विवाद के बाद इस पाठ को पाठ्यक्रम से हटा देना चाहिए, लेकिन इसका कारण यह नहीं है कि इसमें ‘लव जिहाद’ का कोई संदेश है, बल्कि इसलिए कि इस तरह के निर्दोष पाठों को भी राजनीतिकरण का निशाना बनाया जा रहा है, और बच्चों को नफरत की राजनीति से दूर रखना आवश्यक है. ​’लव जिहाद’ और ‘भगवा लव ट्रैप’ जैसे शब्द राजनीतिक लाभ के लिए गढ़े गए भ्रमजाल हैं, जिनका उद्देश्य समुदायों के बीच अविश्वास पैदा करना और समाज को विभाजित करना है. भारत के इतिहास में अंतर-धार्मिक विवाह और धर्म परिवर्तन के कई आयाम रहे हैं, जो स्वेच्छा, सामाजिक गतिशीलता और प्रेम पर आधारित रहे हैं. ​तीसरी कक्षा का पाठ ‘चिट्ठी आई है’ सिर्फ एक निर्दोष पाठ है जो बच्चों को पत्र लिखना सिखाता है. इसे ‘लव जिहाद’ से जोड़कर पेश करना देश के उस मीडिया वर्ग की घृणित मानसिकता को दर्शाता है, जो राष्ट्रीय एकता और सद्भाव से ज्यादा टीआरपी और नफरत के एजेंडे को महत्व देता है. यह समय है कि देश के नागरिक इन राजनीतिक हथकंडों को पहचानें और प्रेम तथा सद्भाव की संस्कृति को बनाए रखें.

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