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करदाताओं के पैसे पर ‘लाडली राजनीति’: महाराष्ट्र की ‘माझी लाडकी बहिण’ योजना पर एक तीखी टिप्पणी

By – Waseem Raza Khan

महाराष्ट्र सरकार की मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिण योजना निःसंदेह राज्य की महिलाओं को आर्थिक संबल प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई एक महत्वाकांक्षी पहल है। इस योजना के तहत, राज्य की पात्र महिलाओं को हर महीने ₹1,500 की वित्तीय सहायता सीधे उनके खाते में दी जाती है। सरकार का दावा है कि यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है। लेकिन, इस योजना की भारी-भरकम लागत और इसे लागू करने के तरीके पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं, विशेषकर जब यह करदाताओं के पैसे पर चलती है।

यह योजना, जिसकी लाभार्थी संख्या करोड़ों में है, राज्य के खजाने पर जबरदस्त दबाव डाल रही है। एक ओर सरकार महिलाओं को ‘लाडली’ बनाकर अपना वोट बैंक मजबूत कर रही है, वहीं दूसरी ओर इसका बोझ सीधे-सीधे उन नागरिकों पर पड़ रहा है जो ईमानदारी से टैक्स चुकाते हैं। यह एक चिंताजनक तथ्य है कि करोड़ों रुपये बांटने की इस प्रक्रिया में शुरुआत में बड़ी धांधली हुई।

सरकारी खजाने को चूना लगाने वाली ‘लाडली’

जांच-पड़ताल में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि हजारों ऐसी महिलाएं भी इस योजना का लाभ उठा रही थीं जो वास्तव में इसकी पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करती थीं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2,200 से अधिक महिला सरकारी कर्मचारी, जो पहले से ही लाखों रुपये कमाती हैं और सरकार को टैक्स भी देती हैं, वे भी हर माह ₹1,500 की ‘लाडली’ राशि वापस ले रही थीं।

इतना ही नहीं, कई मामलों में ऐसी महिलाएं भी शामिल थीं जिनके पति या पिता करोड़ों की संपत्ति रखते हैं और अच्छी खासी आय अर्जित करते हैं। यह स्थिति उस योजना के मूल उद्देश्य पर सवाल खड़ा करती है, जिसे आर्थिक रूप से कमजोर और जरूरतमंद महिलाओं के लिए शुरू किया गया था। इस तरह, लाखों की कमाई करने वाली महिलाओं ने चुपचाप जनता के टैक्स के पैसों में से करोड़ों रुपये का चूना लगाया, जबकि वे खुद टैक्स देने वाले वर्ग से आती हैं।

KYC: लाखों ‘लुटेरी’ महिलाओं का सफाया

जब अनियमितताएँ सामने आईं, तो सरकार को योजना में पारदर्शिता लाने और अपात्र लाभार्थियों को बाहर निकालने के लिए ई-केवाईसी (e-KYC) प्रक्रिया को अनिवार्य करना पड़ा। इस सत्यापन प्रक्रिया के शुरू होते ही, लाखों अपात्र महिलाओं का योजना से सफाया हो गया। वे महिलाएं जो गलत तरीके से लाभ ले रही थीं, उनकी पात्रता तुरंत रद्द हो गई।

इस कदम से पात्र महिलाएं तो खुश हैं कि अब उनके लाभ में कोई रुकावट नहीं आएगी, लेकिन उन फ्रॉड महिलाओं ने महीनों तक जो लाभ लिया और सरकारी खजाने को लाखों-करोड़ों का नुकसान पहुंचाया, उसकी भरपाई कैसे होगी?

जनता के पैसे की बर्बादी और ‘मर्द की जेब से कतरन’

यह योजना वित्तीय रूप से एक विचित्र स्थिति पैदा करती है। सरकार एक हाथ से करदाताओं, जिनमें बड़ी संख्या में पुरुष भी शामिल हैं, की आय पर टैक्स लगाकर कटौती करती है, और उसी पैसे को दूसरे हाथ से महिलाओं को एक ‘लाडली उपहार’ के रूप में बांटती है। एक तरह से, यह कहा जा सकता है कि “मर्द की जेब से ₹1,500 निकालकर महिला को दिया जा रहा है”। इससे टैक्स दाताओं को उनकी आय में कटौती तो महसूस होती है, लेकिन बदले में कोई सीधा लाभ नहीं मिलता।

महाराष्ट्र सरकार पर यह टिप्पणी करना आवश्यक है कि लोक लुभावन योजनाएं वोट बैंक को साधने का जरिया हो सकती हैं, लेकिन सरकारी खजाने की बर्बादी की कीमत पर नहीं।

सरकार के लिए आवश्यक कदम

सरकार को अब इस बात पर तत्काल कदम उठाने की जरूरत है कि जिन फ्रॉड महिलाओं ने गलत जानकारी देकर महीनों तक इस योजना का लाभ लिया है, उस नुकसान की भरपाई कैसे हो।

  • रिकवरी तंत्र: सरकार को तुरंत एक सख्त रिकवरी तंत्र स्थापित करना चाहिए ताकि अपात्र घोषित हुई महिलाओं से अब तक ली गई राशि वापस ली जा सके।
  • दोषियों पर कार्रवाई: जानबूझकर गलत जानकारी देने वाली सरकारी कर्मचारियों और अन्य संपन्न महिलाओं पर दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि भविष्य में कोई भी सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करने की हिम्मत न करे।
  • कठोर पात्रता जांच: भविष्य में ऐसी योजनाओं में शुरुआती स्तर पर ही आय और सरकारी नौकरी की स्थिति का कठोर डिजिटल सत्यापन अनिवार्य किया जाए।

‘माझी लाडकी बहिण’ योजना का मूल विचार अच्छा हो सकता है, लेकिन लागू करने की खामियों और राजनीतिक लाभ के लालच ने इसे करदाताओं के पैसे की बर्बादी और बड़े वित्तीय दुरुपयोग का उदाहरण बना दिया है। सरकार को जनता के धन की रक्षा के लिए अब सिर्फ केवाईसी ही नहीं, बल्कि रिकवरी और कार्रवाई पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।

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