Waseem Raza Khan (Chief Editor)
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले ने भारत-पाकिस्तान संबंधों में गंभीर तनाव पैदा कर दिया है. इस हमले में 28 निर्दोष पर्यटकों की जान गई, जिनमें अधिकांश हिंदू थे. यह हमला 2008 के मुंबई हमलों के बाद भारत में सबसे घातक आतंकी हमला माना जा रहा है.
हमले के पीछे कौन?
इस हमले की जिम्मेदारी शुरुआत में द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली, जिसे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन माना जाता है लेकिन TRF ने बाद में अपनी जिम्मेदारी से इनकार कर दिया. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की जांच में यह सामने आया है कि इस हमले की योजना लश्कर-ए-तैयबा, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI और पाकिस्तानी सेना ने मिलकर बनाई थी.
हमलावरों की पहचान और गिरफ्तारी :
हमले में पांच से छह आतंकवादी शामिल थे, जिनमें से कुछ हाल ही में नियंत्रण रेखा पार कर भारत में घुसे थे. इनमें से दो पाकिस्तानी नागरिक होने का संदेह है. आतंकियों की पहचान और गिरफ्तारी के लिए सुरक्षा बलों द्वारा व्यापक तलाशी अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन अभी तक सभी हमलावरों को पकड़ा नहीं जा सका है.
भारत सरकार की प्रतिक्रिया :
भारत सरकार ने इस हमले के जवाब में कई कड़े कदम उठाए हैं जैसे
इंडस जल संधि का निलंबन: भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 की इंडस जल संधि को निलंबित कर दिया है, जिससे पाकिस्तान को मिलने वाले पानी की आपूर्ति पर असर पड़ सकता है.
वाघा-अटारी सीमा बंद:
भारत ने वाघा-अटारी सीमा को यात्रियों के लिए बंद कर दिया है, जिससे दोनों देशों के बीच सीमित व्यापार और लोगों के आवागमन पर असर पड़ा है.
पाकिस्तानी नागरिकों का वीजा रद्द:
भारत ने सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए हैं और उन्हें देश छोड़ने का आदेश दिया है. हैदराबाद में 208 पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटे के भीतर भारत छोड़ने का निर्देश दिया गया है.
राजनयिक संबंधों में कटौती:
भारत ने पाकिस्तान के रक्षा, सैन्य, नौसेना और वायु सलाहकारों को अवांछित व्यक्ति घोषित कर दिया है और उन्हें एक सप्ताह के भीतर भारत छोड़ने का आदेश दिया है.
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया :
पाकिस्तान ने भारत के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि उसका इस हमले से कोई लेना-देना नहीं है. पाकिस्तान ने भारत द्वारा इंडस जल संधि के निलंबन को युद्ध का कार्य करार दिया है और चेतावनी दी है कि वह अपनी जल आपूर्ति की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगा.
युद्ध की संभावना :
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने से युद्ध की आशंका बढ़ गई है. दोनों देशों ने एक-दूसरे के हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया है और नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी की घटनाएं बढ़ गई हैं हालांकि, अभी तक किसी भी पक्ष ने पूर्ण युद्ध की घोषणा नहीं की है, लेकिन स्थिति बेहद संवेदनशील बनी हुई है.
पाकिस्तानी नागरिकों का निर्वासन: कितना उचित?
भारत सरकार द्वारा पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर उन्हें देश छोड़ने का आदेश देना एक कड़ा कदम है हालांकि, इस तरह के निर्णयों से निर्दोष नागरिकों को भी परेशानी हो सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से यह कदम आवश्यक हो सकता है, लेकिन इसे मानवीय दृष्टिकोण से भी देखना चाहिए.
भारत सरकार की दिशा: सही या गलत?
भारत सरकार ने इस हमले के जवाब में कड़े और निर्णायक कदम उठाए हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से उचित माने जा सकते हैं. हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के कदमों से दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता पर असर पड़ सकता है.
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि 22 अप्रैल का पहलगाम आतंकी हमला भारत के लिए एक गंभीर चुनौती है. भारत सरकार ने इस हमले के जवाब में कड़े कदम उठाए हैं, लेकिन इस स्थिति को संभालने के लिए संयम और कूटनीति की भी आवश्यकता है. दोनों देशों को चाहिए कि वे बातचीत के माध्यम से समाधान निकालें और क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखें.
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इंडस जल संधि क्या है?
इंडस जल संधि (Indus Waters Treaty – IWT) एक ऐतिहासिक समझौता है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को हुआ था। इस संधि को विश्व बैंक की मध्यस्थता में दोनों देशों के तत्कालीन प्रधानमंत्रियों — भारत के जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के फील्ड मार्शल अयूब खान — ने हस्ताक्षर किया था।
इस संधि के मुख्य बिंदु:
छह नदियाँ शामिल: सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों को इस संधि में शामिल किया गया —
पश्चिमी नदियाँ: सिंधु, झेलम, चिनाब
पूर्वी नदियाँ: रावी, ब्यास, सतलज
पानी का बंटवारा:
→ भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलज) के पानी पर पूरा अधिकार दिया गया।
→ पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) के पानी के उपयोग का अधिकार मिला, हालांकि भारत को इन नदियों पर “गैर-खपत उपयोग” (non-consumptive use) — जैसे सिंचाई, हाइड्रोपावर (बिजली उत्पादन) — की अनुमति मिली।
अब तक की स्थिति:
इस संधि को विश्व की सबसे स्थिर जल संधियों में से एक माना जाता रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध (1965, 1971, 1999) के बावजूद इस संधि का पालन होता रहा है।
भारत इस संधि को कैसे निलंबित कर सकता है?
1️⃣ कानूनी दृष्टिकोण से
इंडस जल संधि में “संधि का निलंबन” या “संधि समाप्ति” (Termination) का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
→ परंतु अंतरराष्ट्रीय कानून (Vienna Convention on the Law of Treaties, 1969) के अनुसार, अगर कोई पक्ष यह साबित करे कि दूसरा पक्ष संधि की शर्तों का “गंभीर उल्लंघन” (Material Breach) कर रहा है या अगर सुरक्षा की दृष्टि से असाधारण स्थिति उत्पन्न हो गई है, तो संधि को निलंबित या रद्द किया जा सकता है।
2️⃣ भारत की तकनीकी शक्तियाँ
भारत का पश्चिमी नदियों के पानी पर भी सीमित नियंत्रण है:
→ जलविद्युत परियोजनाएँ (Run-of-the-river projects)
→ सिंचाई के लिए सीमित उपयोग
भारत यदि चाहे तो वर्तमान परियोजनाओं को तेज कर सकता है, नई परियोजनाएँ बना सकता है और पानी के बहाव को कुछ हद तक रोक सकता है, जिससे पाकिस्तान को मिलने वाला पानी कम हो सकता है।
3️⃣ व्यवहारिक कदम
→ भारत पाकिस्तान को नोटिस देकर “संधि के निलंबन” की घोषणा कर सकता है।
→ जल आयोग (Indus Commission) को भंग कर सकता है।
→ पाकिस्तान को मिलने वाले पानी को रोककर अपने बांधों और जलाशयों में जमा कर सकता है।
क्या संधि का निलंबन वास्तव में संभव है?
तकनीकी रूप से → हाँ, भारत ऐसा कर सकता है।
कानूनी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर → यह काफी विवादास्पद होगा और भारत को अंतरराष्ट्रीय दबाव का सामना करना पड़ेगा।
व्यवहारिक रूप से → पश्चिमी नदियों के पानी का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में ही गिरता है, इसलिए भारत पूरी तरह पानी नहीं रोक सकता। लेकिन इससे पाकिस्तान में “पानी की किल्लत” और आर्थिक व सामाजिक संकट ज़रूर आ सकता है। इंडस जल संधि भारत-पाकिस्तान संबंधों का एक संवेदनशील लेकिन शक्तिशाली उपकरण है। भारत इसे राजनयिक दबाव की तरह इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन इसके पूर्ण निलंबन के गंभीर क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिणाम होंगे।
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पाकिस्तान में पानी की स्थिति — संक्षिप्त पृष्ठभूमि
पाकिस्तान की लगभग 80% सिंचाई पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) के पानी पर निर्भर है। देश का 90% कृषि उत्पादन इसी सिंचाई व्यवस्था पर आधारित है। पाकिस्तान की लगभग 70% आबादी सिंधु नदी प्रणाली के जलग्रहण क्षेत्र में रहती है। पहले से ही पाकिस्तान “अत्यधिक जल संकटग्रस्त देश” (Extremely Water-Stressed Country) माना जाता है (World Resources Institute)। पाकिस्तान का प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1000 घन मीटर/वर्ष से भी नीचे जा चुका है (Water Scarcity)। (संयुक्त राष्ट्र मानक के अनुसार इसे “जल अभाव” की स्थिति कहा जाता है)
भारत अगर पानी रोकता है तो पाकिस्तान पर क्या असर पड़ेगा?
1️⃣ कृषि पर असर
पंजाब, सिंध, खैबर-पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान — ये प्रांत बुरी तरह प्रभावित होंगे। गेहूं, धान, गन्ना, कपास जैसे मुख्य फसल उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है। खाद्यान्न संकट और महंगाई बढ़ सकती है। किसान आंदोलन, आंतरिक अस्थिरता की आशंका।
2️⃣ पीने के पानी पर असर
पंजाब और सिंध प्रांतों के कई शहरों (लाहौर, मुल्तान, हैदराबाद आदि) में पीने के पानी की भारी किल्लत। ग्रामीण इलाकों में पेयजल संकट के चलते जन-स्वास्थ्य आपदा की स्थिति।
3️⃣ बिजली संकट
पाकिस्तान की 40-50% जलविद्युत उत्पादन क्षमता सिंधु प्रणाली पर आधारित है। पानी घटने से बिजली उत्पादन ठप पड़ सकता है। लोडशेडिंग (बिजली कटौती), उद्योगों की बंदी और आर्थिक संकट गहरा सकता है।
4️⃣ पर्यावरणीय और सामाजिक संकट
सिंधु डेल्टा (Sindh Delta) — जहाँ अरब सागर में सिंधु नदी गिरती है — का पारिस्थितिकी तंत्र बर्बाद हो सकता है। मछलीपालन (Fishing), जलजीव, दलदली क्षेत्र नष्ट हो सकते हैं। बड़ी संख्या में “जल प्रवास (Water Migration)” — लोग अपने गाँव-शहर छोड़कर पलायन करेंगे।
5️⃣ पाकिस्तान की आंतरिक और राजनीतिक स्थिति
भारत विरोधी उग्रवाद बढ़ सकता है। सरकार पर दबाव और अस्थिरता बढ़ेगी। सेना और कट्टरपंथी संगठनों की ताकत बढ़ सकती है। कश्मीर मुद्दे के बहाने पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को बदनाम करने की कोशिश करेगा।
क्या भारत वास्तव में पाकिस्तान का पानी “पूरी तरह” रोक सकता है?
सच्चाई ये है:
➤ नहीं। भारत पश्चिमी नदियों के पूर्ण बहाव को नहीं रोक सकता, क्योंकि इन नदियों का मुख्य स्रोत पाकिस्तान में ही गिरने वाला प्राकृतिक बहाव है।
➤ भारत कुछ हद तक पानी का “रोक कर देर से छोड़ना” (Storage & Delayed Release) कर सकता है, जिससे मौसमी कमी और पाकिस्तानी खेतों तक पानी पहुंचने में देरी की स्थिति बन सकती है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया :
संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, चीन, अमेरिका और अन्य शक्तियाँ भारत पर दबाव बना सकती हैं कि वह ऐसा न करे। चीन पाकिस्तान का खुलकर समर्थन कर सकता है (CPEC, ग्वादर पोर्ट जैसे रणनीतिक हितों के चलते)। भारत की वैश्विक छवि पर आंशिक असर पड़ सकता है।
कहा जा सकता है कि भारत “पानी की ताकत” को रणनीतिक हथियार (Strategic Leverage) की तरह इस्तेमाल कर सकता है — सीधे युद्ध जैसा नहीं, पर दबाव बनाने के साधन के रूप में। पूरी तरह पानी रोकने से पाकिस्तान में हालात बिगड़ सकते हैं, लेकिन भारत के लिए भी यह एक दोधारी तलवार होगी।
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भारत के 6 मुख्य सावधानीपूर्वक रणनीतिक विकल्प
उचित अधिकारों का पूर्ण उपयोग
भारत को अपनी पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलज) का पूरा-पूरा पानी इस्तेमाल करना चाहिए (अभी लगभग 10-15% पानी बिना उपयोग के पाकिस्तान चला जाता है).
भारत पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर अपने अधिकार के तहत छोटे-छोटे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स, सिंचाई प्रोजेक्ट्स को तेजी से पूरा करे (जो संधि के तहत मान्य हैं)। इससे पाकिस्तान को मिलने वाले पानी में कानूनी रूप से थोड़ी कमी आएगी — कोई अंतरराष्ट्रीय कानून उल्लंघन नहीं होगा। यह सबसे सुरक्षित और व्यावहारिक विकल्प है।
पानी रोक कर धीरे-धीरे छोड़ना :
भारत अपने बांधों और जलाशयों में पानी जमा कर, कृषि सीजन के मुताबिक पाकिस्तान में पानी छोड़ने की टाइमिंग को प्रभावित कर सकता है। इससे पाकिस्तान के किसानों को “क्रिटिकल टाइम” (रबी/खरीफ सीजन) पर पानी कम मिलेगा और फसल प्रभावित होगी। दबाव बढ़ेगा, लेकिन तकनीकी रूप से संधि का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
इंडस जल आयोग की बैठकें निलंबित करना :
भारत 1960 से चले आ रहे इंडस जल आयोग (Indus Waters Commission) की बैठकों को स्थगित कर सकता है।
इससे पाकिस्तान के साथ संवाद और सहयोग की प्रक्रिया पर विराम लगेगा — राजनयिक दबाव बढ़ेगा।
मध्यवर्ती दबाव का साधन है, युद्धोन्मुख नहीं है।
आंशिक जल आपूर्ति निलंबन की घोषणा :
भारत पाकिस्तान पर आतंकवाद का आरोप लगाकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सूचित करते हुए संधि की आंशिक निलंबन की घोषणा कर सकता है. इससे भारत को नैतिक और कानूनी आधार पर एक सकारात्मक छवि मिलेगी, और पाकिस्तान को बातचीत की मेज पर लाना आसान होगा. यह विकल्प तभी सही है जब भारत के पास पर्याप्त डिप्लोमैटिक समर्थन हो।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की जल-आधारित आलोचना :
भारत को संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, G20, SCO जैसे मंचों पर यह प्रचार करना चाहिए कि पाकिस्तान आतंकवाद फैलाकर क्षेत्रीय स्थिरता और जलविवाद को जन्म दे रहा है। इससे अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति भारत के पक्ष में जा सकती है, जिससे भारत को जल-संधि पर कड़े कदम उठाने की वैधता मिलेगी।
👉लंबी अवधि का राजनयिक दबाव बनाने के 1 तरीके हैं जल कूटनीति और सैन्य सतर्कता भारत को “Water Weaponization” की रणनीति अपनाते समय नियंत्रण रेखा (LoC) और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सैन्य सतर्कता भी रखनी होगी, क्योंकि पाकिस्तान उकसावे की कार्यवाही कर सकता है. साथ ही, चीन पर (सिंधु नदी के ऊपरी हिस्से में) की गतिविधियों पर भी कड़ी नजर रखनी होगी.
कौन से विकल्प खतरनाक हैं (जो नहीं अपनाने चाहिए तुरंत)?
❌ पूर्ण जल आपूर्ति बंद करना
यह युद्ध की घोषणा जैसा माना जाएगा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत की छवि को नुकसान पहुँचा सकता है।
संधि का एकतरफा पूर्ण रद्दीकरण इसके भी गंभीर कानूनी और अंतरराष्ट्रीय परिणाम होंगे। बहुत आख़िरी विकल्प के रूप में ही सोचना चाहिए।