By – Waseem Raza Khan
आजकल कुछ मुस्लिम नेता अजीबोगरीब हाल में नज़र आते हैं. मंच पर खड़े होकर पुतलों को फूल चढ़ाना, तस्वीरों को नमन करना, मूर्तियों के आगे सिर झुकाना क्या यही उनकी देशभक्ति का सबूत है? यह कैसी देशभक्ति है जो इस्लाम के सबसे बड़े सिद्धांत को कुचलकर दिखाई जाती है? इस्लाम ने साफ़ कहा है अल्लाह के अलावा किसी की इबादत मत करो. पैग़ंबर ﷺ ने बुतपरस्ती को शिर्क कहा और यह अल्लाह के गुस्से को बुलाने वाली सबसे बड़ी गुनाहों में से है. लेकिन अफ़सोस! वही लोग जो जनता के सामने मुसलमानों के रहनुमा कहलाते हैं, वही सबसे पहले अल्लाह की चेतावनी भूल जाते हैं. ये नेता सोचते हैं कि फूल चढ़ाकर और मूर्तियों के आगे झुककर वो देशभक्त कहलाएँगे. लेकिन असल में वे न तो अल्लाह के वफ़ादार रहते हैं और न ही सचमुच के देशभक्त. जो अपने ईमान के साथ गद्दारी करता है, वह अपने वतन के साथ कैसा सच्चा रह सकता है? पैग़ंबर ﷺ ने कहा था कि शिर्क से बचो, लेकिन आज के मुस्लिम नेता वोट और कुर्सी के लालच में वही शिर्क को अपनी राजनीतिक इबादत बना चुके हैं. यह दोहरी ज़िंदगी, यह ढोंग आखिर कब तक चलेगा? देशभक्ति का सबूत देने के लिए क्या ज़रूरी है कि इस्लाम की नीतियों को रौंदा जाए? क्या कुरान और हदीस से बढ़कर कोई संविधान है जो हमें शिर्क का हुक्म देता हो? असल सच्चाई तो यह है कि यह सब ढोंग की दुकानें हैं. जो अल्लाह के हुक्म को मानते हैं, वही असली वफ़ादार हैं अल्लाह के भी और अपने देश के भी. लेकिन जो लोग अपने ईमान का सौदा करते हैं, वो न देश के हो सकते हैं न धर्म के. आज ऐसे नेताओं के लिए बस इतना ही कहना काफी है कि धर्म बेचकर देशभक्ति का तमाशा करने वाले, न अल्लाह के हैं, न मुल्क के. आज के मुस्लिम नेता बड़े ही दिलचस्प किरदार बन गए हैं. जब भी कहीं कोई मूर्ति खड़ी हो या कोई पुतला सजाया जाए, ये लोग सबसे आगे खड़े होकर फूल चढ़ाते नज़र आते हैं. तस्वीरों को नमन, मूर्तियों को प्रणाम, पुतलों के आगे सजदा – और फिर दावा करते हैं कि “देखो, हम कितने सच्चे देशभक्त हैं!” अगर यही देशभक्ति है, तो फिर अल्लाह का संदेश कहां गया? कुरान की आयतें कहां गईं? पैग़ंबर ﷺ की चेतावनियां कहां गईं? इस्लाम ने साफ़ कहा है अल्लाह के अलावा किसी की इबादत मत करो और पैग़ंबर ﷺ ने तो बुतपरस्ती को सबसे बड़ा गुनाह, यानी शिर्क बताया लेकिन ये नेता इन्हें तो बस कैमरे चाहिए, भीड़ चाहिए, तालियां चाहिए और कुर्सी चाहिए. क्या इन्हें याद नहीं कि शिर्क करना अल्लाह के गुस्से को न्योता देना है? या फिर वोट और सत्ता की भूख में इनकी याददाश्त ही उड़न-छू हो गई है? ये वही लोग हैं जो मंच पर खड़े होकर कुरान की आयतें पढ़ते हैं, और अगले ही पल मूर्ति के आगे सिर झुकाते हैं. मतलब दिन में मुसलमान, रात में पुतलों के पुजारी. देशभक्ति का तमाशा करने के लिए क्या सचमुच अल्लाह के हुक्म को बेचना ज़रूरी है? क्या देश से मोहब्बत दिखाने के लिए अपने ईमान की कब्र खोदना लाज़िमी है? क्या बिना पुतलों को फूल चढ़ाए कोई वतन से वफ़ादार नहीं हो सकता? सच्चाई यह है कि जो अल्लाह से बेवफ़ाई करता है, वो अपने देश से भी कभी वफ़ा नहीं कर सकता. जो शिर्क करता है, वो चाहे लाख झंडे लहराए, उसकी देशभक्ति सिर्फ़ एक नाटक है. मुसलमानों को सोचना चाहिए क्या ऐसे नेताओं के पीछे चलना है जो ईमान का गला घोंटकर राजनीति करते हैं? या फिर उन रास्तों पर चलना है जो अल्लाह और उसके रसूल ﷺ ने बताए? आज इन ढोंगी नेताओं के लिए बस इतना कहना काफी है कि तुम्हारी देशभक्ति का नक़ाब उतारकर देखो, नीचे सिर्फ़ लालच और शिर्क का चेहरा नज़र आता है.