Nasik – Correspondent
महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने त्रिभाषा पद्धति को लेकर ठाकरे बंधुओं पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि जो लोग कुछ साल पहले त्रिभाषा पद्धति से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं और अब इस मुद्दे पर बवाल खड़ा कर रहे हैं, उन्हें त्रिभाषा सूत्र पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है. भुसे का यह बयान तब आया है जब ठाकरे बंधुओं ने कक्षा पहली से हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के विरोध में मुंबई में एक संयुक्त मोर्चा का आह्वान किया है.
मराठी शिक्षा और नैतिक अधिकार:
त्रिभाषा सूत्र को लेकर राज्य में चल रहे हंगामे के बीच, शिक्षा मंत्री भुसे ने नाशिक में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इस विषय पर बोलने का नैतिक अधिकार केवल उन लोगों को है जिन्होंने मराठी माध्यम से शिक्षा प्राप्त की है. उन्होंने स्पष्ट किया कि यह व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का विषय नहीं है और इस पर अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री और दोनों उपमुख्यमंत्री लेंगे.
त्रिभाषा सूत्र और महाराष्ट्र का रुख:
भुसे ने बताया कि देश में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख ने कक्षा पहली से ही त्रिभाषा सूत्र अपनाया है, जबकि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और सिक्किम ने इसे तीसरी कक्षा से स्वीकार किया है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि महाराष्ट्र में भी कक्षा पहली और दूसरी में केवल मौखिक रूप से (जैसे बड़-बड़ गीत, चित्रात्मक रूप में) शिक्षा दी जानी थी, और इसके लिए कोई पुस्तक भी प्रकाशित नहीं की गई थी. भुसे ने बताया कि यह विषय तीसरी कक्षा से पुस्तक के रूप में रहेगा. भुसे ने इस बात पर भी जोर दिया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के मंत्रिमंडल ने डॉ. रघुनाथ माशेलकर की अध्यक्षता वाली कार्य समिति की रिपोर्ट को स्वीकार किया था. उन्होंने यह भी बताया कि राज्य में कक्षा पांचवीं से त्रिभाषा सूत्र लागू है, इसके बावजूद 20 से 25 प्रतिशत अन्य माध्यमों के स्कूलों में कई वर्षों से कक्षा पहली से ही त्रिभाषा सूत्र के अनुसार शिक्षा दी जा रही है. भुसे ने कहा कि त्रिभाषा सूत्र के संबंध में साहित्यकारों के साथ संवाद किया जाएगा. उन्होंने यह भी बताया कि राज्य के सीबीएसई और अन्य बोर्डों के सभी स्कूलों में मराठी पढ़ाना अनिवार्य कर दिया गया है.