वसीम रज़ा खान (मुख्य संपादक)
भारत सरकार शिक्षा को सबके लिए सुलभ और गुणवत्तापूर्ण बनाने के उद्देश्य से सरकारी स्कूलों को विभिन्न मदों में करोड़ों रुपये का फंड देती है. लेकिन दुर्भाग्यवश, इस फंड का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है. इसमें स्कूल व्यवस्थापन समितियों (SMC), मुख्य अध्यापकों (Principal/Headmaster), और कई बार उच्चाधिकारियों तक की मिलीभगत सामने आती रही है.
स्कूलों को किन मदों में फंड मिलता है?
भारत सरकार और राज्य सरकारें स्कूलों को निम्नलिखित मुख्य मदों में फंड मुहैया कराती हैं:
मिड-डे मील योजना (Mid Day Meal Scheme)
बच्चों के लिए दोपहर के भोजन हेतु अनुदान.
सर्व शिक्षा अभियान (SSA) / समग्र शिक्षा अभियान
स्कूलों के विकास के लिए फंड: भवन निर्माण, मरम्मत, फर्नीचर, शौचालय आदि.
स्वच्छ विद्यालय अभियान :
स्वच्छता सुविधाओं के लिए.
छात्रवृत्ति एवं मुफ्त सामग्री
वर्दी, किताबें, जूते-मोजे, बैग आदि के लिए.
तकनीकी सहायता फंड
डिजिटल शिक्षा के लिए कंप्यूटर और अन्य डिवाइस.
टीचर ट्रेनिंग फंड
शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु.
समावेशी शिक्षा (Inclusive Education)
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए अतिरिक्त सहायता.
स्कूल अनुदान (School Grant)
स्टेशनरी, रख-रखाव और छोटी मरम्मत के लिए प्रतिवर्ष राशि.
विकास कार्य (Infrastructure Development Grant)
नए कमरे, प्रयोगशाला, खेल का मैदान आदि के लिए.
दुरुपयोग के तरीके :
स्कूल फंड का दुरुपयोग कई स्तरों पर होता है, जैसे:
फर्जी बिलिंग: मरम्मत कार्य, स्टेशनरी, फर्नीचर खरीद आदि में फर्जी बिल बनाकर पैसे निकाले जाते हैं.
घटिया सामग्री का उपयोग: किताबें, वर्दी, जूते आदि बहुत घटिया गुणवत्ता के बांटे जाते हैं, ताकि लागत बचाकर पैसा जेब में डाला जा सके.
फर्जी नाम दर्ज कर पैसे लेना: छात्र संख्या बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना और उस आधार पर फंड प्राप्त करना.
मिड-डे मील घोटाला: घटिया खाना परोसना या कभी-कभी नाममात्र का खाना दिखाकर पूरा पैसा हड़पना.
कंस्ट्रक्शन घोटाला: स्कूल भवन निर्माण में घटिया सामग्री या निर्माण कार्य पूरा ही न करना.
बिना वास्तविक उपयोग के डिजिटल उपकरण खरीदना: महंगे कंप्यूटर खरीदकर स्कूलों में उपयोग न कराना.
छात्रवृत्ति घोटाला: पात्र छात्रों तक पूरी छात्रवृत्ति न पहुंचने देना.
स्कूल व्यवस्थापन समिति (SMC) और मुख्य अध्यापक की भूमिका
SMC की भूमिका: विद्यालय विकास योजना (School Development Plan) बनाने और फंड के उपयोग की निगरानी की जिम्मेदारी SMC की होती है. लेकिन कई बार समिति में स्कूल के कर्मचारियों, पंचायत प्रतिनिधियों और स्थानीय दबंगों की मिलीभगत से गड़बड़ी की जाती है.
मुख्य अध्यापक की भूमिका:
मुख्य अध्यापक को स्कूल के फंड का प्रबंधन करना होता है. वह चेक साइन करते हैं, खर्च के प्रमाण पत्र प्रस्तुत करते हैं और बिल बनाते हैं. कई बार अध्यापक या प्रिंसिपल निजी लाभ के लिए फर्जीवाड़ा करते हैं या कमीशन पर कार्य स्वीकृत करते हैं.
मुख्य अध्यापकों के खातों में कौन-कौन से फंड आते हैं?
वार्षिक स्कूल अनुदान (School Grant)
छात्रवृत्ति की धनराशि (Scholarship Fund)
समग्र शिक्षा अभियान के तहत मरम्मत का फंड
मिड डे मील योजना का संचालन खर्च
विकास कार्यों के लिए विशेष अनुदान
वर्दी, किताब, बैग आदि वितरण हेतु धनराशि
तकनीकी शिक्षा (Smart Classroom) हेतु अनुदान
उच्च अधिकारियों की भूमिका
जिला शिक्षा अधिकारी (DEO), ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) आदि का दायित्व है फंड के उपयोग की निगरानी करना.
लेकिन कई बार यह अधिकारी या तो निरीक्षण सही तरीके से नहीं करते या खुद कमीशन लेकर आँखें मूंद लेते हैं. प्रत्येक स्तर पर कमिशन प्रणाली बन गई है, जिसमें फंड का एक बड़ा हिस्सा अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच बंट जाता है.
सरकार ध्यान क्यों नहीं देती?
प्रणालीगत भ्रष्टाचार: जब पूरा तंत्र (नीचे से ऊपर तक) भ्रष्ट हो, तो शिकायतों पर कार्रवाई मुश्किल हो जाती है.
निगरानी तंत्र की कमजोरी: स्कूलों की प्रभावी ऑडिट और सोशल ऑडिट नियमित रूप से नहीं होती.
राजनीतिक संरक्षण: स्थानीय नेता और अधिकारियों का गठजोड़.
जनता की जागरूकता की कमी: ग्रामीण इलाकों में लोग शिकायत करने या जानकारी मांगने से डरते हैं. सरकारी स्कूलों में फंड के दुरुपयोग से बच्चों का भविष्य संकट में है. इस स्थिति को सुधारने के लिए ज़रूरी है.
पारदर्शी फंड उपयोग प्रणाली :
सोशल ऑडिट को अनिवार्य बनाना
सख्त दंड व्यवस्था
छात्रों और अभिभावकों की जागरूकता बढ़ाना
मीडिया और नागरिक संगठनों की निगरानी