वसीम रज़ा खान (मुख्य संपादक)
आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन, टैबलेट, लैपटॉप और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गए हैं. वयस्कों के साथ-साथ छोटे बच्चों का भी इन उपकरणों पर निर्भरता तेजी से बढ़ रही है. अभिभावक, व्यस्तता या अनजानपन के कारण, बच्चों के बढ़ते स्क्रीन टाइम पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. परिणामस्वरूप, बच्चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास पर गंभीर दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं.
बच्चों के बढ़ते स्क्रीन टाइम के दुष्परिणाम
शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव
लंबे समय तक स्क्रीन देखने से बच्चों की आंखों में तनाव, दृष्टि समस्याएं और सिरदर्द की शिकायतें बढ़ती हैं. शारीरिक गतिविधियों की कमी के कारण मोटापा, मांसपेशियों की कमजोरी और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है.
मानसिक और भावनात्मक विकास में बाधा :
अत्यधिक स्क्रीन उपयोग बच्चों में चिड़चिड़ापन, अधैर्य, अवसाद और गुस्से जैसी समस्याएं पैदा कर रहा है. डिजिटल दुनिया में लगातार व्यस्त रहने से उनका सामाजिक व्यवहार कमजोर पड़ रहा है, जिससे वे असली दुनिया से कटते जा रहे हैं.
शैक्षणिक प्रदर्शन में गिरावट :
स्क्रीन पर अधिक समय बिताने वाले बच्चे पढ़ाई में कम रुचि दिखाते हैं. उनकी एकाग्रता शक्ति घटती है और स्मरण शक्ति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे उनके शैक्षणिक परिणाम प्रभावित होते हैं.
डिजिटल व्यसन (Addiction) का खतरा :
ऑनलाइन गेम्स और सोशल मीडिया के आकर्षण में फंसकर कई बच्चे डिजिटल एडिक्शन के शिकार हो रहे हैं, जिससे उनका समग्र विकास बाधित हो रहा है. बच्चों को मोबाइल फोन और ऑनलाइन गेमिंग से दूर रखने के उपाय नियम और सीमाएँ तय करें.
बच्चों के स्क्रीन टाइम के लिए स्पष्ट और सख्त नियम बनाएं. उदाहरण के लिए, रोजाना 1 घंटे से अधिक स्क्रीन उपयोग की अनुमति न देना.
वैकल्पिक गतिविधियों को बढ़ावा दें :
बच्चों को खेलकूद, चित्रकला, संगीत, नृत्य, पढ़ाई और अन्य रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखें. आउटडोर गेम्स को प्राथमिकता दें ताकि उनका शारीरिक विकास हो सके.
परिवार के साथ समय बिताएँ :
परिवार के साथ नियमित रूप से खेलना, पढ़ना और बातचीत करना बच्चों को स्क्रीन से दूर रखने का अच्छा तरीका है.
स्वयं उदाहरण बनें :
माता-पिता खुद भी स्क्रीन का सीमित उपयोग करें. बच्चे बड़ों की नकल करते हैं, इसलिए घर में मोबाइल-फ्री समय तय करें.
तकनीकी नियंत्रण का प्रयोग करें :
पैरेंटल कंट्रोल ऐप्स का इस्तेमाल कर स्क्रीन टाइम और सामग्री की निगरानी करें.
स्कूलों में की जाने वाली योजनाएँ और पहलें :
डिजिटल लिटरेसी और जागरूकता कार्यक्रम
बच्चों को डिजिटल उपकरणों के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों के बारे में शिक्षित करें. उन्हें संतुलित डिजिटल उपयोग का महत्व समझाएं.
सक्रिय शारीरिक शिक्षा और खेल कार्यक्रम :
स्कूलों में प्रतिदिन कम से कम एक घंटा शारीरिक खेलकूद अनिवार्य किया जाए, ताकि बच्चे ऊर्जा का सही दिशा में उपयोग कर सकें.
‘नो स्क्रीन डे’ की घोषणा :
सप्ताह में एक दिन स्कूलों में ‘नो स्क्रीन डे’ मनाया जाए, जिसमें बच्चों को बिना डिजिटल उपकरणों के विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों में भाग लेने का अवसर मिले.
पुस्तकालय और रचनात्मक क्लबों का विस्तार :
स्कूलों में रोचक पुस्तकालय, विज्ञान क्लब, संगीत और कला क्लब स्थापित किए जाएँ ताकि बच्चों को मोबाइल की बजाय अन्य आकर्षक विकल्प मिलें.
अभिभावक कार्यशालाओं का आयोजन :
अभिभावकों के लिए नियमित कार्यशालाओं का आयोजन किया जाए, जिनमें उन्हें बच्चों के स्क्रीन टाइम के खतरे और उसके प्रबंधन के उपायों के बारे में जागरूक किया जाए.
निष्कर्ष : आज की पीढ़ी का भविष्य उनकी आदतों पर निर्भर है. यदि हम बच्चों को समय रहते मोबाइल फोन और ऑनलाइन गेमिंग की लत से नहीं बचा पाए, तो उनके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास पर गंभीर संकट मंडरा सकता है. इसके लिए अभिभावकों, शिक्षकों और समाज के हर जिम्मेदार नागरिक को एकजुट होकर काम करना होगा. संतुलित डिजिटल उपयोग को प्रोत्साहित करते हुए बच्चों को एक स्वस्थ, सक्रिय और रचनात्मक जीवन जीने के लिए प्रेरित करना हमारी साझा जिम्मेदारी है.