वाहिद काकर 9421532266
विशेष रिपोर्ट |धुलिया | 4 मई 2025
भारत के प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान, शिक्षाविद और समाजसेवी मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी का शनिवार, 4 मई 2025 को महाराष्ट्र के अक्कलकुवा में निधन हो गया। वे 74 वर्ष के थे और कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके निधन से केवल उनके परिवार और अनुयायियों ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मुस्लिम समाज में शोक की लहर दौड़ गई है। उनका जीवन और कार्य एक मिसाल है, जिसने शिक्षा, सेवा और संयम का संदेश दिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
मौलाना वस्तानवी का जन्म 1 जून 1950 को गुजरात के सूरत जिले के कोसादी गाँव में हुआ। एक साधारण किसान परिवार में जन्मे मौलाना साहब ने अल्पवयात में ही कुरआन हिफ्ज़ कर लिया था। धार्मिक शिक्षा की गहराई में उतरते हुए उन्होंने बड़ौदा के मदरसा शम्स-उल-उलूम, तुर्केसर के मदरसा फलाह-ए-दारेन और सहारनपुर के प्रसिद्ध मदरसा माज़ाहिर-उल-उलूम से दीनी तालीम हासिल की। उन्होंने हदीस, तफ्सीर, फिक्ह जैसी ऊँची इस्लामी शिक्षाओं में महारत प्राप्त की।
परंतु, उनकी दृष्टि केवल पारंपरिक शिक्षा तक सीमित नहीं थी। उन्होंने आधुनिक उच्च शिक्षा की आवश्यकता को समझते हुए एमबीए की डिग्री भी प्राप्त की, जो उस समय के किसी इस्लामी आलिम के लिए एक दुर्लभ कदम था। इसी संतुलन ने उन्हें एक प्रगतिशील धार्मिक नेता के रूप में स्थापित किया।
शैक्षिक क्रांति का नेतृत्व
1979 में, उन्होंने महाराष्ट्र के अक्कलकुवा में जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम की स्थापना की। यह संस्था न केवल इस्लामी शिक्षा देती है, बल्कि आधुनिक चिकित्सा, फार्मेसी, इंजीनियरिंग और विज्ञान के क्षेत्र में भी शिक्षा प्रदान करती है। मौलाना वस्तानवी का मानना था कि मुस्लिम समाज की प्रगति के लिए केवल धार्मिक नहीं, बल्कि व्यावसायिक और वैज्ञानिक शिक्षा भी अनिवार्य है।
इसी सोच के तहत उन्होंने भारत का पहला अल्पसंख्यक-संचालित मेडिकल कॉलेज स्थापित किया, जिसे मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की मान्यता प्राप्त है। यह संस्थान आज हजारों विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहा है और समाज में स्वास्थ्य सेवाओं का एक मजबूत स्तंभ बन चुका है।
देवबंद में ऐतिहासिक अध्याय
2011 में मौलाना वस्तानवी को विश्वविख्यात इस्लामी संस्था दारुल उलूम देवबंद का मोहतमिम (कुलगुरु) नियुक्त किया गया। यह पद इस्लामी शिक्षण जगत में अत्यंत प्रतिष्ठित माना जाता है। उन्होंने देवबंद में पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक विषयों को शामिल करने का प्रयास किया।
हालांकि, उनके कुछ प्रगतिशील विचारों और बयानों को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ, जिससे उन्हें पद से हटना पड़ा। इसके बावजूद, उन्होंने कभी कटुता नहीं रखी और अपने मिशन में जुटे रहे।
आध्यात्मिकता और समाज सेवा
मौलाना वस्तानवी केवल एक शिक्षाविद नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी थे। वे मौलाना मुहम्मद युनूस जौनपुरी और मौलाना सिद्दीक अहमद बांदवी जैसे बड़े बुजुर्गों के शिष्य थे। सादगी, संयम और सेवा उनकी पहचान थी। वे अक्सर युवाओं को शिक्षा और सदाचार की राह पर चलने की प्रेरणा देते थे। उन्होंने नशा-मुक्ति, स्वास्थ्य जागरूकता, और महिलाओं की शिक्षा जैसे विषयों पर भी कार्य किया।
अंतिम यात्रा और श्रद्धांजलि
4 मई 2025 की रात को उनका जनाजा अक्कलकुवा में उठाया गया। देशभर से आए उनके अनुयायी, विद्यार्थी, शिक्षाविद और सामाजिक नेता अंतिम दर्शन के लिए उपस्थित हुए। नम आंखों से उन्हें विदाई दी गई।
मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि कैसे धार्मिक मूल्यों को आधुनिकता से संतुलित किया जा सकता है। उन्होंने जो बीज बोया, इशातुल उलूम वह आज एक वटवृक्ष बन चुका है, जिसकी छाया में लाखों लोग ज्ञान, सेवा और मानवता की राह पर अग्रसर हो रहे हैं।