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HomeHindiधार्मिक स्थलों के मामले और राजनीति - वसीम रज़ा खान

धार्मिक स्थलों के मामले और राजनीति – वसीम रज़ा खान

चर्चा का विशय वही है जो शनिवार से न केवल नाशिक शहर बल्कि अब तक पूरे महाराष्ट्र में गूंज गया है… शनिवार को नाशिक शहर में सकल हिंदु समाज और अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा विभिन्न नेताओं के नेतृत्व में एक बडा आंदोलन किया गया था जिस के कारण पूरे शहर का माहोल इस हद तक बिगड गया के कुछ इलाकों में curfue लगा हुआ दिखाई देने लगा था.

हिंदू संगठनों द्वारा विरोध प्रदर्शन की धमकी दिए जाने के बाद नाशिक महा नगर पालिका ने शनिवार सुबह पुणे रोड के काठे गली इलाके में एक अनधिकृत धार्मिक स्थल ढांचे के खिलाफ कार्रवाई की. यह कार्रवाई 25 साल से इस मुद्दे पर चल रही कार्रवाई के बाद की गई है. हिंदू संगठनों ने चेतावनी दी कि जब तक अनधिकृत निर्माण को पूरी तरह से हटा नहीं दिया जाता, वे अपना विरोध प्रदर्शन बंद नहीं करेंगे. स्थिति के जवाब में, नाशिक पुलिस ने साधुओं और महंतों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया. महंत सुधीर दास पुजारी को हिरासत में लिया गया, जबकि महंत अनिकेत शास्त्री को नजरबंद कर दिया गया. पुलिस की कार्रवाई का उद्देश्य क्षेत्र में किसी भी संभावित कानून और व्यवस्था के मुद्दों को रोकना है.

शहर के काठे गल्ली सिग्नल से नागजी चौक, मुंबई नाका की ओर जाने वाले मार्ग पर यह धार्मिक स्थल है जिसका कुछ निर्माण एसी जगह पर किया गया था जहां नहीं किया जाना चाहिए था. इस धार्मिक स्थल का कुल क्षेत्र 257 स्वेयर मीटर बताया गया. कार्रवाई शुरू होने के दौरान किसी भी अनुचित घटना को रोकने के लिए पुलिस ने बड़ी संख्या में जवान तैनात किए. मुंबई नाका और भद्रकाली पुलिस स्टेशन की सीमा के भीतर काठे गल्ली सहित द्वारका क्षेत्र में शनिवार को धारा 144 लागू करने के आदेश पुलिस उपायुक्त किरणकुमार चव्हाण ने जारी कर दिए थे.

द्वारका से काठे गल्ली और आसपास के कई रास्ते कानून व्यवस्था और यातायात के कारणों से बंद कर दिए गए थे. इस दौरान पुलिस की मुस्तैदी दिखाई दी. पुलिस ने बिना किसी भेदभाव के अपनी जिम्मेदारी निभाई. दोनों समुदायों के लोगों को कुछ देर के लिए हिरासत में लिया गया और उन्हें समझ देकर छोड दिया गया.

यह मामला होने के बाद सोशल मीडिया पर सैकडों के लोगों के बयान सामने आए. हिंदु मुस्लिम समुदायों के लोग आज भी बयान दे रहे हैं. लेकिन इन बयानों में अधिकतर एक दूसरे के खिलाफ कीचड उछाला जा रहा है. कुछ समाजसेवकों ने कहा कि हर धार्मिक स्थल की जांच होनी चाहिए और उनका भी अतिक्रमण तोडा जाता चाहिए जो सही भी है, केवल एक समुदाय को निशाना बना कर दंगे भडकाने की राजनीती करने से शहर का विकास नहीं होता. नेता विकास के नाम पर वोट बटोरने को आ जाते हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद जैसे ही सत्ता में आते हैं दरार पैदा करने वाली राजनीती शुरू कर दी जाती है. दंगे कोई नहीं चाहता, आम हिंदु या मुसलमान अपनी रोजी रोटी की चिंता में सुबह घर से निकलता तो शाम को थक थका कर घर लौटने के बाद उसे शहर में इस प्रकार की राजनीती के कीचड से भी निमटना पडता है.

नेता धार्मिक स्थलों को मुद्दा बना कर समाजों को लडा का अपनी दुकान चलाने में मस्त रहते हैं और समाज एक दूसरे का गला काटने लग जाते हैं. जिन धार्मिक स्थलों को आस्था, श्रद्धा और इबादतों से सजाया जाना चाहिए उसे हम लडाई का मुद्दा बनाने लग गए हैं. मस्जिद मंदिर दरगाह को लेकर एक दूसरे का गिरेबान पकडने से अच्छा है उन धार्मिक स्थलों का जो उपयोग किया जाना चाहिए उसे पूरा किया जाए. यह समझाने का काम धर्म गुरुओं और उलमा का है लेकिन यह गिरोह भी पूरी तरह से नेतागिरी के चोला पहन कर धर्म के नाम पर जिंदाबाद मुर्दाबाद के नारे लगवा रहा है.

सांसदों, विधायकों को चाहिए कि वे समाजों को जोडे रखने की राजनीती करें न कि दरार पैदा करने वाली काली सियासत की हिस्सा बनें, ऐने नेता नागिरिक का उपयोग केवल वोट बटोरने के लिए करते है, वो किसी भी पार्टी के हों लेकिन दंगे भडकाने वाले सांसद विधायक या नेता लोगों का उद्धार कभी नहीं करता, केवल नफरत फैला कर अपनी दुकान चमकाता हैं.

सियासी, समाजी और दो समुदायों के बीच दरार पैदा करने लिए नाकाम so called नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं. झगडों में तकरार होता है, उसके बाद झगडे और फिर झगडे दंगों का रूप ले लेते हैं. धार्मिक मामलों में सोशल मीडिया दुश्मनी के साथ दंगों को भडकाने में खास किरदार निभाता है जैसा कि दरगाह मामले में हो रहा है. नेता लोगों को समझाने के बजाए उसे और बढाने के प्रयास में लगे हुए हैं. ऐसे में हर समुदाय के नागरिकों को शहर को बचाने और समाज में दरार पैदा होने से बचाने के लिए भरपूर प्रयत्न करना होगा. हर समाज, हर समुदाय एक दूसरे पर निर्भर होता है, राजनीति सबको गुमराह करके दंगे भडका कर अपनी दुकान सजाती और नेता लोगों को लडते मरते देख कर मजा लेते हैं, उनके साथ सभी नहीं लेकिन अधिकतर धर्म गुरु खुद नारेबाजी करके भडकाऊ भाषण देने लगते हैं जिसका नतीजा यह होता है कि लोग भेडों के रेवड की तरह गर्दन झुकाकर उनके पीछे चलने लगते हैं और आग भडकती रहती है.

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