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जरूरतमंद मरीजों को नहीं मिल रही मुफ्त चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा आयुक्तालय के निर्णय की अनदेखी कर रहे सरकारी अस्पताल

WASEEM RAZA KHAN (Headline Post विशेष)

देश में अधिकतम जनसंख्या ऐसे लोगों की है जो छोटी बडी बीमारियों के लिए हमेगा खर्च और विभिन्न टेस्ट करवाने के लिए भारी आर्थिक बोझ बर्दाश्त नहीं कर सकते. ऐसे लोगों में भी अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की है, ऐसे लोगों को बीमारी से निजात पाने के लिए सरकारी अस्पतालों की ओर ही बढना पडता है क्योंकि निजी अस्पतालों का खर्च सामान्य जनता नहीं झेल सकती तो गरीबों की पहुंच तो असंभव ही होती है. ऐसे में सरकारी अस्पतालों में भी केस पेपर से लेकर दवाईयों और विभिन्न टेस्ट के लिए लोगों को खर्च करना पडता है जिससे सिद्ध होता है कि सभी सरकारी अस्पताल, वो मनपा के हों या जि. प या राज्य सरकार की किसी और संस्था के हों यह अस्पताल स्वास्थ्य सेवा आयुक्तालय द्वारा मुफ्त इलाज के आदेश की अनदेखी कर रहे हैं. 28 दिसंबर 2015 और 28 जुलाई 2021 के सरकारी निर्णय, 24 सितंबर 2021 के स्वास्थ आयुक्तालय के पत्र और 3 अगस्त 2023 के राज्य मंत्री मंडल के निर्णय के अनुसार 12 अगस्त 2023 को स्वास्थ्य सेवा आयुक्तालय ने एक आदेश पत्र जारी किया था जिसमें निर्णय लिया गया कि लोक स्वास्थ विभाग के नियंत्रण में आने वाले सभी सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों का उपचार और सेवाएं मुफ्त दी जाएं.सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग ने आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. इन मरीजों को रियायती स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के बावजूद, यह देखा गया कि कई मरीज इन कम दरों को भी वहन करने में असमर्थ होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे चिकित्सा उपचार से वंचित रह जाते हैं. इस मुद्दे को आम करने के लिए, मुख्यमंत्री ने विधानसभा में घोषणा की कि सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा प्रदान की जाने वाली सभी प्रकार की स्वास्थ्य सेवाएं सभी के लिए मुफ्त कर दी जाएंगी. 3 अगस्त, 2023 को आयोजित कैबिनेट की बैठक में इस निर्णय की पुष्टि की गई, जहां यह निर्णय लिया गया कि सरकारी अस्पतालों द्वारा प्रदान की जाने वाली सभी जांच, उपचार और चिकित्सा सेवाएं (राष्ट्रीय रक्त नीति के अनुसार रक्त और रक्त घटक आपूर्ति शुल्क को छोड़कर) निःशुल्क होंगी.योजना की मुख्य विशेषताएं: सभी सरकारी अस्पताल सभी मरीजों को निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करें. 15 अगस्त, 2023 से मरीज शुल्क नहीं लिए जाने का निर्णय लिया गया. राष्ट्रीय रक्त नीति के अनुसार रक्त और रक्त घटक आपूर्ति शुल्क इस योजना से मुक्त रहेंगे. सरकार एक अलग सरकारी प्रस्ताव जारी होने के बाद इस योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी करेगी. ऐसे निर्णय आयुक्तालय के पत्र में दर्ज हैं. आदेश अनुसार अस्पतालों को निर्देश दिए गए हैं कि सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों का उनके अधिकृत पहचान पत्र का उपयोग करके निःशुल्क पंजीकरण किया जाएगा. सरकारी अस्पतालों में किए जाने वाले सभी परीक्षण और उपचार निःशुल्क होंगे. बाह्य रोगी विभागों में डॉक्टर बाहरी दवा या उपभोग्य वस्तुएं नहीं लिखेंगे, असाधारण मामलों में जहां बाहरी दवा आवश्यक है, इसे आरकेएस अनुदान का उपयोग करके स्थानीय स्तर पर खरीदा जाएगा और रोगियों को निःशुल्क प्रदान किया जाएगा, ईसीजी, एक्स-रे, सीटी स्कैन और प्रयोगशाला परीक्षण जैसे निदान परीक्षण निःशुल्क होंगे, भर्ती किए जाने वाले विभागों में मरीजों से डिस्चार्ज के दौरान कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा, इस योजना के कार्यान्वयन से पहले मरीजों से एकत्रित शुल्क सरकारी खाते या रोगी कल्याण कोष में वापस कर दिया जाएगा,जन जागरूकता :योजना के बारे में विस्तृत जानकारी विभिन्न मीडिया चैनलों के माध्यम से व्यापक रूप से प्रचारित की जाए, सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में मरीजों को योजना के बारे में जानकारी देने के लिए डिस्प्ले बोर्ड लगाए जाएं, मरीज टोल-फ्री नंबर 104 पर अपने ऊपर लगाए गए किसी भी शुल्क के बारे में शिकायत दर्ज करा सकते हैं.शिकायत निवारण :टोल-फ्री नंबर पर प्राप्त सभी शिकायतों को पंजीकृत किया जाए और संबंधित संस्थान प्रमुख और जिला स्वास्थ्य अधिकारी/जिला सर्जन को सूचित किया जाएगा. संबंधित अस्पताल प्रमुख शिकायतों के समाधान के लिए जिम्मेदार होंगे. यदि कोई अधिकारी मरीजों पर शुल्क लगाता पाया जाता है, तो जिला सर्जन/जिला स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. नाशिक जिले के कई सरकारी अस्पतालों में देखा जा रहा है कि सरकारी आदेशों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है, नाशिक शहर के सिविल अस्पताल, मनपा का बिटको अस्पताल, जाकिर हुसैन अस्पताल जैसे बडे अस्पतालों में केस पेपर के लिए भी 10 रुपये लिए जाते हैं. दवाओं के लिए कीमत, एक्सरे, लैब की जांच के लिए पैसे देने पडते हैं या जिम्मेदार अधिकारी बाहर से जांच करने के लिए पत्र देते हैं. जिससे मरीजों पर खर्च का बोझ बढता है. नागरिक मांग कर रहे हैं सरकारी अस्पताल गरीबों को मुफ्त इलाज का लाभ दें.

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